यदि ऐसे व्हाट्सएप संदेश जो जातिगत आरक्षण पर राय व्यक्त करते हैं, एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराध नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट WhatsApp Messages That Express Opinion On Caste Reservation Not An Offense Under SC/ST Act: Bombay High Court

 यदि ऐसे व्हाट्सएप संदेश जो जातिगत आरक्षण पर राय व्यक्त करते हैं, एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराध नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

 WhatsApp Messages That Express Opinion On Caste Reservation Not An Offense Under SC/ST Act: Bombay High Court


✅बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में शुक्रवार (29 नवंबर 2024) फैसले में एक महिला के खिलाफ मामला बंद करा, इस मामले में एक महिला ने अपने प्रेमी को अपमानजनक संदेश भेजकर, शिकायतकर्ता-प्रेमी के साथ उसकी जाति के कारण रिश्ता खत्म कर लिया था।   

✅उसके प्रेमी ने महिला के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (SC/ST एक्ट) के तहत मामला दर्ज कराया। महिला के खिलाफ आरोप लगाया गया, कि उसने अपने प्रेमी के साथ रोमांटिक संबंध खत्म करते समय उसे ह्वाट्सऐप पर जातिसूचक मैसेज किये थें। महिला ने प्रेमी के साथ उसकी जाति के कारण रिश्ता खत्म कर लिया था। 
 

✅इस मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस उर्मिला जोशी फाल्के ने कहा कि प्रेमी और प्रेमिका, दोनों के बीच आदान-प्रदान किए गए ह्वाट्सऐप संदेश में केवल जातिगत आरक्षण के बारे में विचार व्यक्त किए गए थे। इन मैसेज में से कुछ मैसेज ह्वाट्सऐप फॉरवर्ड भी थे। ये मैसेज एससी/एसटी समाज के खिलाफ दुश्मनी या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा नहीं देते हैं।

✅अदालत ने इस मामले में कहा, “पूरी सामग्री को देखने पर यह पता चलता है कि संदेश केवल जाति आरक्षण प्रणाली के बारे में व्यक्त की गई भावनाओं को दर्शाते हैं। ऐसे संदेशों से कहीं भी यह पता नहीं चलता कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ किसी तरह की दुश्मनी या घृणा या दुर्भावना को बढ़ावा देने का कोई प्रयास किया गया था।”
 

✅जस्टिस फाल्के ने आगे कहा कि इस मामले में अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि उसका लक्ष्य केवल शिकायतकर्ता ही था। हालाँकि, लड़की ने ऐसा कोई शब्द नहीं लिखा, जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ किसी भी तरह की दुर्भावना या दुश्मनी या घृणा को बढ़ावा दे।

✅दोनों पक्षों को सुनने और साक्ष्य की समीक्षा करने के बाद कोर्ट ने निर्णय दिया कि आरोपित महिला द्वारा भेजे गए मैसेज एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(U) के तहत अपराध के लिए कानूनी मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं। 
 

कोर्ट ने कहा ये कानून ST,SC के खिलाफ दुर्भावना या घृणा को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों को संबोधित करता 
है।








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